शहीद दिवस 23 मार्च को ही क्यों मनाया जाता है?

शहीद दिवस क्यों मनाया जाता है? भगत सिंह का जो अंतिम खत था उसके बारे में भी हम इस ब्लॉक में आगे जानेंगे। तो दोस्तों आपको बता दें कि वैसे तो शहीद दिवस 23 मार्च को मनाया जाता है लेकिन शहीद दिवस 30 जनवरी को भी बनाया जाता है इसकी वजह यह है कि इस दिन महात्मा गांधी की हत्या हुई थी और उन्हीं की याद में 30 जनवरी को भी शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेकिन मुख्य रूप से 23 मार्च को ही शहीद दिवस के रूप में माना जाता है। 23 मार्च यानी कि शहीद दिवस कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण दिवस है।

भगत सिंह ,सुखदेव और राजगुरु को फांसी देने के क्या कारण थे?

शहीद दिवस 23 मार्च वर्ष 1931 में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी इसी के कारण उन्हीं की याद में 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन इन तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी। वैसे तो इनको फांसी की सजा 24 मार्च को दी गई थी जो जज था जिन्होंने इनको सजा सुनाई थी उसने 24 मार्च को सुबह 8:00 बजे इनकी फांसी का समय दिया था लेकिन अंग्रेजों ने डर के के कारण क्योंकि जो लोग थे वहीं के विरोध में इकट्ठा हो रहे थे और उसके 1 दिन पहले ही चुपके से अंग्रेजों ने 23 मार्च को ही इन तीनों को शाम को फांसी की सजा दे दी गई।

भगत सिंह ,राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा क्यों दी गई थी?

8 अप्रैल 1929 के दिन चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्प्यूट बिल के विरोध में सेंट्रल असेंबली में इन तीनों ने मिलकर बम फेंके। इसमें सबसे सबसे आगे भगत सिंह खड़े थे और उन्होंने ही सबसे पहले बम फेंके थे और उनकी गिरफ्तारी भी सबसे पहले ही हुई थी और फिर उनके बाद इन दोनों की गिरफ्तारी की गई वैसे तो इन लोगों की फांसी होने की सजा के कई सारे कारण थे लेकिन सबसे मुख्य कारण यही था। दरअसल इन तीनों ने मिलकर अकेले ही अंग्रेजी सैनिकों की नाक में दम कर दिया था। दिलचस्प बात यह थी कि भगत सिंह केवल 23 वर्ष के थे और सुखदेव भी केवल 23 वर्ष के थे और जो राजगुरू थे वह सिर्फ 22 वर्ष के थे फिर भी इतनी कम उम्र उम्र में इन्हें फांसी की सजा सुनाई गई और फिर भी निडर होकर फांसी के फंदे पर झूल गए।

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की अंतिम इच्छा क्या थी?

फांसी की सजा होने से पहले फांसी मिलने वाले व्यक्ति से उसकी आखिरी इच्छा पूछी जाती है तो ऐसा ही इन तीनों से पूछी गई थी कि इन तीनों की आखिरी इच्छा क्या है तो इन तीनों ने अपनी अंतिम इच्छा यह बताई थी कि यह आपस में तीनों गले लगेंगे और गले मिलकर हंसते हंसते एक कम उम्र में फांसी के फंदे पर लटक गए देश के लिए और आज के जमाने की अगर हम युवकों की बात करें तो उन्हें कुछ पता ही नहीं कि देश दुनिया में क्या हो रहा है देश के लिए जान देने की तो बात ही छोड़ो तो इन जैसे महान महान देशभक्तों के लिए यह देश 24 मार्च को इन लोगों की याद में शहीद दिवस मनाता है।

शहीद दिवस,आज भी भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु हमारे दिल में यंग क्यों है?

इतनी कम उम्र में देश के लिए फांसी के फंदे पर हंसते हंसते चलने की वजह से आज भी हमारे दिल में यह लोग यंग है अमर है जिंदा है और रहेंगे और आज के इस देश में कितने ही अंग नागरिक हैं जो देश के लिए मर मिटने को तैयार हैं ऐसे सभी नहीं है लेकिन कुछ तो है लेकिन 20 -22 साल की उम्र बहुत छोटी उम्र होती है आजकल के युवकों को इस उमर में कुछ भी नहीं पता होता कि वह आगे क्या करना चाहते हैं क्या बनेंगे क्या करेंगे अपना फ्यूचर कैसे बनाएंगे लेकिन भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु जैसे इन तीन महान युवकों ने देश के लिए अपनी आहुति तक दे दी।इनकी कुर्बानी तो हमेशा याद रहनी चाहिए। जो जिस उम्र में मर जाता है उसके लिए जीवन भर बस वही उम्र रहती है इसलिए चाहे कितनी भी साल बीत जाए वह लोग हमेशा यंग युवा ही रहेंगे। जिस तरह गांधीजी बूढ़े थे और बूढ़े ही रहेंगे यह भी एक फैक्ट है। भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा कहां दी गई थी?इन तीनों को जो फांसी दी गई थी वो लाहौर में दी गई थी जो कि पंजाब में पाकिस्तान में स्थित है यह हमारा भारत देश है पूरा और 23 मार्च 1931 को इन्हें फांसी की सजा दी गई थी। बात करते हैं भगत सिंह के आखिरी खत के बारे में।

भगत सिंह ने अपने आखिरी खत में क्या लिखा था?

भगत सिंह के आखरी खत जो जो था उनके देश के नाम अपने दोस्त के नाम अपनी ही उम्र के युवाओं के नाम तो उनका खात था कि साथियों जीने की इच्छा मुझ में भी होनी चाहिए मैं इसे छिपाना नहीं चाहता हूं लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं की मैं कैद होकर या पाबंद रूपा बंद होकर ना रहूं मेरा नाम हिंदुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है क्रांतिकारी दलों के आर्द्रता दर्शकों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है इतना ऊंचा की जीवित रहने की स्थिति में मैं सोचा नहीं हो सकता था मेरे हंसते हंसते फांसी पर चढ़ने चढ़ने की सूरत में देश की माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह की उम्मीद करेंगे इससे आजादी के देने वाले कुर्बानी की आबादी इतनी बढ़ जाएगी की क्रांति को रोकना नामुमकिन हो जाएगा आजकल मुझे खुद पर गर्व है अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है कामना यह है कि अब से है और नजदीक हो जाए। तो यही लिखा था उन्होंने अपने अंतिम खत में इस देश के नाम, युवाओं के नाम और अपने दोस्तों के नाम।भगत सिंह को फांसी दी जा रही थी तो लाहौर जेल में स्थित कर्मचारियों की स्थिति कैसी थी?दोस्तों जब भी भगत सिंह को फांसी दी गई थी जेल जो लाहौर जेल था उसमें बंद सभी कैदी रो रहे थे और जो कर्मचारी थे जेल में वह भी भगत सिंह की फांसी पर रो रहे थे यहां तक की फांसी देने वाले जल्लाद की आंखें भी नम हो गई थी क्योंकि सब हिंदुस्तानी थे लेकिन फिर भी सब ने अपने कर्तव्य को निभाया गुलाम जो कुछ गद्दार ना होते तो हमारा देश गुलाम कभी ना होता गद्दार पहले भी थे और कुछ गद्दार आज भी हैं।

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