19 जनवरी 1990, कश्मीर की सबसे भयानक सुबह आखिर क्या हुआ था 19 जनवरी 1990
सब कुछ सही चल रहा था कश्मीरी पंडित का अचानक 19 जनवरी 1990 की सुबह को मस्जिदों से ऐलान किया जाता है यहां क्या चलेगा निजाम ए मुस्तफा जी हां यही वह नारा था
जिससे मस्जिद में अजान के साथ शुरू हुआ एक आतंकी खेल आतंकी खेल मस्जिदों से नारे लगाए जा रहे थे कश्मीर में रहना है तो अल्लाह हू अकबर कहना है जी हां ये कहानी है
कश्मीरी पंडित
उनमें स्कीम कश्मीरी पंडितों की जॉब की बिना किसी भेदभाव थे हिंदू मुस्लिम सद्भाव बनाते हुए कश्मीर की भुजाओं में अमन और चैन के साथ रह रहे थे आखिर क्या हुआ की अचानक उनकी जिंदगी बदल गई और स्लिम पाकिस्तान पसंदी आतंकवादियों ने उन पर कत्लेआम मचाना शुरू कर दिया
असी गछी पाकिस्तान , बटव रोस त बटनेव
असी गछी पाकिस्तान , बटव रोस त बटनेव जिस का हिंदी में मतलब होता है कि पाकिस्तान चाहिए हमें और हिंदू औरतें भी चाहिए कि ना मर्दों के
जी हां इन आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता यही कहा जाता है लेकिन कश्मीर में उन्होंने धर्म की मर्यादा की सभी सीमाओं को लांच हुए हिंदू महिलाओं का सामूहिक बलात्कार किया उन्हें मारा कत्लेआम किया 15 लाख हिंदुओं में से सिर्फ 9000 की बचे आखिर इतने कत्लेआम के बाद भी सरकार चुप रही
किसी ने उन महिलाओं का दर्द समझने की कोशिश भी नहीं करी चीनी की एक एक नहीं बल्कि कई कई आतंकियों ने अपनी हवस का शिकार बनाया था और खुलेआम उन्हें निर्वस्त्र करके घुमाया जाता था
इतनी क्रूरता इतनी निर्दयता आज हमें सिर्फ सोचने मात्र से ही घबराहट हो जाती है सोचो उन बेचारी महिलाओं ने तो इसको सब रहा होगा क्या उनका गुनाह सिर्फ इतना था कि वह पंडित थे ब्राह्मण थे क्या उनका दिन आगे था क्यों भारतीय थे क्यों किसी सरकार ने आगे बढ़कर उनकी मदद नहीं की
इस्लामिक क्रूरता और कश्मीरी पंडित
इस्लामिक क्रूरता का इससे घिनौना चेहरा नहीं हो सकता की लाखों कश्मीरी पंडितों को या तो भगा दिया गया या मौत के घाट उतार दिया गया खून से सनी कश्मीर की वादियां कभी भी स्वर्ग नहीं कहलाई जा सकती
मुस्लिम आतंकवाद
कश्मीर के मुसलमानों ने या यूं कहो कि कश्मीर के मुस्लिम आतंकवादियों ने उस रात हिंदुओं के घरों को जलाया हजारों परिवारों को मौत के घाट उतार दिया गया उनके मंदिरों को तोड़ा गया जला दिया गया और उनके घरों का परिवारों का सब का नामोनिशान भी तक मिटा दिया गया
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अनुसार जनवरी 1990 में कश्मीर घाटी में के भीतर 70500 परिवार थे और 1990 से लेकर 1992 के बीच इन परिवारों में 70000 से ज्यादा की आबादी थी लेकिन अगर हम 2011 तक की बात करें तो मात्र 799 लोग ही बचे हैं
कश्मीर में नरसंहार
जिस कश्मीर में लगभग 1000000 कश्मीरी पंडित हुआ करते थे आज की तारीख में मात्र 9000 से ज्यादा नहीं है कश्मीरी हिंदुओं की कुल आबादी का 15% हिस्सा था जो कि 1995 तक रटते रटते मात्र 0.1% ही रह गया अब हम खुद ही अनुमान लगा सकते हैं कि इतने बड़े नरसंहार की क्या वजह रही होगी उस नरसंहार को जिसमे आदमी ने अपनी आंखों के सामने देखा होगा उसकी क्या मनोदशा रही होगी
आज जो समाज के ठेकेदार बनते फिरते हैं पहले या यूं कहें कि उस समय कहां चले गए थे जब कश्मीरी पंडितों को जलाया जा रहा था मारा जा रहा था उनकी महिलाओं का बलात्कार किया जा रहा था
कश्मीर में हिंदुओं का कत्लेआम
कश्मीर में हिंदुओं का कत्लेआम एक सुनियोजित तरीके से किया गया था यह सिलसिला 1990 से पहले ही शुरू हो गया था जबकि 1989 में सबसे पहले पंडित टीका लाल डब्ल की हत्या की गई थी कि का लाल टकलू जो कि कश्मीर में हिंदुओं का एक प्रमुख चेहरा माना जाता था
श्रीनगर में सरेआम टकलू को गोलियों से भून दिया गया जिसकी जिम्मेदारी जेकेएलएफ जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के आतंकवादियों ने ली मगर कभी किसी के खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज नहीं हुआ 4 महीने बाद ही 4 जनवरी 1990 को श्रीनगर के उर्दू अखबार में आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन का एक बयान छापा जाता है
जिसमें कि हिंदुओं को कश्मीर घाटी छोड़ने के लिए कहा जाता है जब तक धरती का माहौल बहुत देख खराब हो चुका था और हिंदू लोग डरने लगे थे उन्हें धमकियां दी जाती थी सरेआम गोलियों से भून दिया जाता था
उनकी महिलाओं का अपहरण कर लिया जाता था बच्चों को गोली मार दी जाती थी और यह सब खौफनाक घटनाएं सभी कश्मीरी पंडितों ने अपनी आंखों से देखी है आज हम सिर्फ एक फिल्म की वजह से कश्मीरी पंडितों के दर्द का एक छोटा सा अनुभव कर सकते हैं तो जरा सोच कर देखो उस समय उन लोगों की क्या दशा रही होगी