गुड़ी पड़वा क्यों मनाया जाता है इसकी क्या महत्व है।
गुड़ी पड़वा एक मराठी शब्द है और यह हिंदी कैलेंडर में जो नए साल की शुरुआत होती है यह तब मनाया जाता है इसी दिन के दिन से ही हमारे भारत के हिंदू नव वर्ष की शुरुआत हो जाती है।
अंग्रेजी कैलेंडर जनवरी से स्टार्ट होता है जनवरी से दिसंबर तक परंतु हमारे हिंदी में चैत्र के नवरात्रों से प्रारंभ होता है तो जिस दिन गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया जाता है उस दिन चेत्र का पहला नवरात्रा भी मनाया जाता है यह एक हिंदुओं का बहुत अच्छा और बहुत प्राचीन त्योहार है।
साउथ इंडिया में ज्यादा इसका चलन है जो कि आंध्रप्रदेश कर्नाटक महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा मनाया जाता है। जिसका अर्थ है विजय पताका, गुड़ी का अर्थ है विजय प्रताप पताका ।
प्राचीन मान्यता के अनुसार शालीन वाहन ने मिट्टी के सैनिकों से सेना बनाई और उन्हें शत्रुओं से लड़ने के लिए उनमें जान फूंक दी और उन शत्रुओं को पराजित कर दिया।
इस तरह से इसे विजय के दिवस के रूप में भी मनाते हैं और शालीन वाहन शक का प्रारंभ भी इसी दिन हुआ था।
प्राचीन मान्यता के अनुसार यह माना जाता है कि गुड़ी पड़वा के दिन ही ब्रह्मा जी ने हमारी सृष्टि, हमारा जो यह ब्रह्मांड है इसकी रचना करी थी इसका निर्माण किया था ब्रह्मा जी ने इसी दिन ही ब्रह्मा जी ने सब बनाए थे इसमें देवी देवता राक्षस मुनि सी नदी पर्वत कंकर पत्थर सब इसी दिन बनाए थे
प्राचीन मान्यता के अनुसार भगवान श्री राम का राज्य अभिषेक भी किया गया था जब भगवान श्री राम रावण को मारकर लंका जीत कर वापस अपनी अयोध्या में आए थे उसके बाद आने के बाद उनका बहुत अच्छा स्वागत हुआ और उनका राज्याभिषेक भी किया गया तो उस दिन गुड़ी पड़वा का दिवस मनाया गया था
और इसी दिन ही राजा युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी हुआ था और इसी दिन विक्रमादित्य जोकि उज्जैन के सम्राट थे विक्रमादित्य जी ने विक्रम संवत की स्थापना भी करी थी वह भी गुड़ी पड़वा ही थ।
गुड़ी पड़वा के दिन आर्य समाज है उसकी भी स्थापना हुई थी जो कि महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने करी थी|
हिंदू धर्म ही नहीं सिख धर्म में भी इस दिन का विशेष महत्व है सिख परंपरा के अनुसार उनके द्वितीय गुरु श्री अंगद देव जी महाराज का जन्म आज ही के दिन यानी कि गुड़ी पड़वा के दिन हुआ था